30 अक्तू॰ 2019

छठ पर्व क्यों मनाया जाता है

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छठ पर्व क्यों मनाया जाता है


भारत को त्योहारों की भूमि कहा जाए तो गलत नहीं है। यहां पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाए जाते है। त्यौहार के साथ हमारी खुशियां भी एक दूसरे के साथ मिल जाती है। यह पर बहुत से प्रसिद्ध त्योहार मनाए जाते है उनमें से एक है महान पर्व छठ पूजा जो की बिहार का माना जाना पर्व है। यह पहले बिहार झारखंड और पूर्व उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व था जो अब अपने भारत में बहुत ही प्रसिद्ध होने के साथ साथ अब विदेशों में भी मनाया जाने लगा। दीवाली के 6 दिन बाद यह त्योहार  मनाया जाता है । यह त्योहार पूरे चार दिन का होता है। दीवाली के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को समाप्त होता है।  इसमें पहला दिन जिसे नहाय खाय कहते है यह कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती चना के दाल कद्दू की सब्जी और चावल बनाकर खाती हैं।



दूसरा दिन यानी शुक्ल पक्ष पंचमी को खरना होता है। इस दिन व्रती शाम को स्नान करके गन्ने के रस में चावल पकाकर खीर और चूप्री बनती है। व्रती को खा लेने के बाद परिवार के सभी परिजन उस प्रसाद को ग्रहण करते है। आस पास के लोग भी करना का प्रसाद लेने के लिए आते है। या फिर जहां तक हो सके व्रती के परिजन के द्वारा आस पास पहुंचाया जाता है। इस दिन नमक या चीनी में बने खाद्य पदार्थ ग्रहण व्रती द्वारा नहीं किया जाता है।

तीसरा दिन शुक्ल पक्ष षष्ठी का व्रत 36 घंटे का होता है। इस दिन सभी व्रती के यहां ठेकुआ और चावल के आटे का बना कसार व्रतियों और उनके परिवार के द्वारा बनाया जाता है। अनेक प्रकार के फल फूल सब्जी प्रसाद के रूप में लाया जाता है। और इसे एक बांस की टोकरी में भरकर किसी जलाशय तालाब और नदी के किनारे व्रती के परिजनों के द्वारा ले जाया जाता है। और साथ में गन्ना भी के जाया जाता है और देखते देखते घाटों पर भीड़ लग जाती है और एक मेले का रूप धारण हो जाता है।फिर इसके बाद सायं काल में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
चौथा दिन शुक्ल पक्ष सप्तमी को सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत का समापन करती है। और फिर घाटों पर आए हुए श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण कराया जाता है।

कहां से छठ पूजा प्रारंभ हुआ

ये कहानी एक राजा से जुड़ी हुई है । उस राजा का नाम था प्रियवंत। जिसकी कोई संतान नहीं थी। संतान के बिना राजा बहुत व्याकुल था। ऋषि मुनियों के कहने पर उसने यज्ञ कराया और महर्षि कश्यप ने मालिनी रानी को खीर आहुति में दी। फिर राजा को एक पुत्र की प्राप्ती हुईं किन्तु पुत्र जीवित नहीं था और राजा श्मशान गए और पुत्र के वियोग में अपना प्राण भी त्यागने का निश्चय कर लिया। इस दौरान भगवान की पुत्री देवसिंहा प्रकट हुईं। राजा  पूछा आप कौन है देवी तो उन्होंने बताया कि मै प्रकृति के छात्र वंश में पैदा हुई हूं इसलिए हमे श्रृष्टि के नाम से जाना जाता है। यदि आप मेरा पूजा करते है और दूसरे से भी करवाते है तो आपको पुत्र की प्राप्ती होगी।
यह सुनकर राजा राजा घर आए और कार्तिक षष्टी को पूजा किया। और एक सुंदर पुत्र की प्राप्ती की।

पारम्परिक छठ गीत



और दूसरी कहानी रामायण में मिलती है राजा दशरथ के पुत्र राम जब रावण का वध करके अयोध्या आए थे तो सभी ने मिलकर पाप से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ की योजना बनाई और मुगदल ऋषि के द्वारा राजसूर्य यज्ञ हुआ यज्ञ के दौरान सीता जी ने चार दिन का उपवासना की और ऋषियों ने सीता मां पर गंगा जल छिड़के।
जय छटी मईया

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